बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 राजनीति शास्त्र बीए सेमेस्टर-1 राजनीति शास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 राजनीति शास्त्र
प्रश्न- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्त के स्वरूप और क्षेत्र का वर्णन कीजिये। भारतीयराजनीतिक व्यवस्था में सुधार के लिए यह किस प्रकार उपयोगी है?
उत्तर-
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की प्रकृति (स्वरूप) और क्षेत्र के सम्बन्ध में संविधान के अनुच्छेद 37 में कहा गया है कि "इस भाग (भाग 4) में दिए गए उपबन्धों को किसी भी न्यायालय द्वारा बाध्यता नहीं दी जा सकेगी, किन्तु फिर भी इसमें दिए गए उपबन्ध देश के शासन में मूलभूत हैं और विधि-निर्माण में इन तत्वों का प्रयोग करना राज्य का कर्तव्य होगा"। अतः नीति-निर्देशक सिद्धान्तों के स्वरूप और क्षेत्र को हम निम्न बिन्दु के द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं -
1. वैधानिक शक्ति का अभाव - निर्देशक तत्वों में वैधानिक शक्ति का अभाव होता है। संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को शासन का मूल आधार माना गया है किन्तु साथ ही वे वैधानिक शक्ति प्राप्त या न्याय-योग्य नहीं हैं अर्थात न्यायालय द्वारा इनका क्रियान्वित होना असम्भव है।
2. नीति निदशक तत्वों का जनतान्त्रिक स्वरूप - यद्यपि इन निदेशक तत्वों को न्यायालय द्वारा क्रियान्वित नहीं किया जा सकता, लेकिन इनके पीछे जनमत की सत्ता होती है। जो प्रजातन्त्र का सबसे बड़ा न्यायालय है। अतः जनता के प्रति उत्तरदायी कोई भी सरकार इनकी अवहेलना का साहस नहीं कर सकती। शासन द्वारा किया गया इन तत्वों का उल्लंघन देश में शक्तिशाली विरोध को जन्म देगा। व्यवस्थापिका के भीतर शासन को विरोधी दल के प्रहारों का सामना करना पडेगा और व्यवस्थापिका के बाहर इसे निर्वाचन के समय निर्वाचकों को जवाब देना ही होगा। अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर ने संविधान सभा में ठीक ही कहा था कि, "कोई लोकप्रिय मन्त्रिमण्डल संविधान के चतुर्थ भाग के उपबन्धों के उल्लंघन का साहस नहीं कर सकता है।'
3. नैतिक आदर्शों का रूप - यदि निदेशक तत्वों को केवल नैतिक धारणाएँ ही मान लिया जाये, तो इस रूप में भी इनका विस्तरित क्षेत्र मिल जाता है। ब्रिटेन में मैग्नाकार्टा, फ्रांस में मानवीय और नागरिक अधिकारों की घोषणा तथा अमेरिकी संविधान की प्रस्तावना को कोई वैधानिक शक्ति प्राप्त नहीं है। फिर भी इन देशों के इतिहास पर इनका प्रभाव पड़ा है। इसी प्रकार उचित रूप में यह आशा की जा सकती है कि ये निदेशक तत्व भारतीय शासन की नीति को निर्देशित और प्रभावित करेंगे। एलेन ग्लेडहिल, के शब्दों में, “अनगिनत व्यक्तियों के जीवन नैतिक आदर्शों के फलस्वरूप सुधरे हैं और ऐसे उदाहरण भी मिलने कठिन नही है जबकि उच्च नैतिक आदर्शों का राष्ट्र के इतिहास पर प्रभाव पड़ा हो।'
4. शासन के मूल्यांकन का आधार -नीति निर्देशक तत्वों द्वारा जनता को शासन की सफलता- असफलता की जाँच करने का मापदण्ड भी प्रदान किया जाता है। शासक दल के द्वारा अपने मतदाताओं को निदेशक सिद्धान्तों के सन्दर्भ में अपनी सफलताएँ बतानी होंगी और शासन शक्ति पर अधिकार करने के इच्छुक राजनीतिक दल को इन तत्वों की क्रियान्विति के प्रति अपनी तत्परता और उत्साह दिखाना होगा। इस प्रकार निदेशक तत्व जनता को विभिन्न दलों की तुलनात्मक जाँच करने के योग्य बना देंगे।
5. संविधान की व्याख्या का व्याख्यात्मक स्वरूप - संविधान के अनुसार निदेशक तत्व देश के शासन में मूलभूत हैं। जिसका तात्पर्य यह है कि देश के प्रशासन के लिए उत्तरदायी सभी सत्ताएँ उनके द्वारा निदेशित होंगी। न्यायपालिका भी शासन का एक महत्वपूर्ण अंग होने के कारण यह आशा की जाती है कि भारत में न्यायालय संविधान की व्याख्या के कार्य में निदेशक तत्वों को उचित महत्व देंगे। एम. सी. भी हुए सीतलवाड के शब्दों में "राज्य नीति के इन मूलभूत सिद्धान्तों को वैधानिक प्रभाव प्राप्त न होते उनके द्वारा न्यायालयों के लिए उपयोगी प्रकाश-स्तम्भ का कार्य किया जाता है।'
6. कानून निर्माण में- कानून निर्माण के समय इन नीति निर्देशक तत्वों का प्रयोग करना राज्य का कर्तव्य होगा। यहाँ राज्य का अभिप्राय सभी राजनीतिक सत्ताओं से है। केन्द्रीय सरकार, संसद, राज्य सरकार, विधान मण्डल और भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन सभी स्थानीय और अन्य प्राधिकारी इसके अधीन हैं।
7. नीति निर्देशक तत्वों का समाजवादी स्वरूप - संविधान में उल्लिखित अधिकांश निर्देशक सिद्धान्तों का सम्बन्ध भारत में समाजवाद की स्थापना से है। जैसा कि अनुच्छेद 38 में कहा गया है कि राज्य लोक कल्याण की उन्नति के लिए ऐसी सामाजिक व्यवस्था बनाएगा, जिससे राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं में सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक न्याय का संचार होगा। राज्य इस बात का प्रयास करेगा कि 'विशेष रूप से व्यक्तियों की आय में असमानता कम हो और पद, सुविधाओं और अवसरों के सम्बन्ध में न केवल व्यक्तियों में वरन् विभिन्न क्षेत्र में निवास करने वाले या विभिन्न व्यवसाय में लगे सभी वर्ग के लोगों में असमानता दूर हो। राज्य के प्रत्येक नागरिक (स्त्री-पुरुष) को आजीविका कमाने के साधन प्राप्त हो सके। आर्थिक उत्पादन के साधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार हो जिससे अधिकतम व श्रेष्ठ कल्याण हो सके। सभी को समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाये। अनुच्छेद 41 में कहा गया है कि राज्य का कर्तव्य है कि वह अपनी सामर्थ्य के अनुसार नागरिकों को शिक्षा का अधिकार, बेरोजगारी और अपाहिज होने की दशाओं में सहायता करे।
शैशव और किशोरावस्था का शोषण, नैतिक व भौतिक पतन से संरक्षण हो। 42 वे संविधान संशोधन ने इस नीति निर्देशक सिद्धान्त में संशोधन कर यह उपबन्धित किया गया कि बच्चों को ऐसे अवसर और सुविधाएँ प्रदान की जाएँ जिससे वे स्वतन्त्रतापूर्वक और सम्मान सहित अपना स्वास्थ्य विकास कर सके तथा बचपन और युवावस्था का भौतिक शोषण से संरक्षण हो सके।
8. बौद्धिक उदारवादी स्वरूप - भारत के समस्त राज्य क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान दीवानी, फौजदारी कानून बनाने का प्रयत्न करेगा। राज्य संविधान के प्रारम्भ होने से 10 वर्ष की कालावधि के भीतर 14 वर्ष तक के बालक-बालिकाओं निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा का प्रबन्ध करने का प्रयास करेगा। राज्य पर्यावरण की रक्षा और उसमें सुधार, वन तथा वन्य जीवों की सुरक्षा का प्रयास करेगा। यह धारा 48 ए. 42 वे संशोधन द्वारा जोड़ी गई है। राज्य राष्ट्रीय महत्व के कलात्मक और ऐतिहासिक स्मारको स्थानों व वस्तुओं के संरक्षण की व्यवस्था करेगा। राज्य अपनी लोक सेवाओं में न्यायपालिका को कार्यपालिका से
पृथक करने का प्रयास करेगा। राज्य नीति के निदेशक सिद्धान्तों से सम्बन्धित अंतिम अनुच्छेद 51 भारत की वैदेशिक नीति से सम्बन्धित है। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि राज्य -
(अ) अन्तर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा की उन्नति का,
(ब) विभिन्न राज्यों के बीच न्यायपूर्ण और सम्मानपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने का,
(स) विभिन्न राज्यों में एक-दूसरे के व्यवहारों में अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों और सन्धियों के प्रति बनाने का
(द) अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों का फैसला मध्यस्थता या पंचनिर्णय द्वारा कराने के लिए प्रयास करेगा।
भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में सुधार के लिए नीति निर्देशक तत्वों की उपयोगिता -भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में सुधार के लिए इनकी उपयोगिता का महत्व हम नीति निर्देशक तत्वों के क्रियान्वयन की अब तक की चर्चा से स्पष्ट हो जाता है-
1. पंचायती राज और स्थानीय स्वशासन- नीति निर्देशक तत्वों में ग्राम पंचायतो की स्थापना और उन्हें स्वायत्त शासन की इकाइयों का रूप देने की बात कही गई है। अतः 2 अक्टूबर, 1959 से 'पंचायती राज की व्यवस्था में कमियों देखी गई हैं. उन्हें दूर करने के लिए 1993 ई. में संसद ने 73 वां संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया है। इस संशोधन अधिनियम के आधार पर संविधान में 11 वी अनुसूची की व्यवस्था कर पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है। इसी प्रकार 74 वे संविधान संशोधन अधिनियम के आधार पर शहरी क्षेत्र में स्थानीय स्वशासन की व्यवस्था को सुदृढ़ करने का प्रयास किया गया है।
2. कमजोर वर्गों का कल्याण - अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्ग के लोगो के लिए संविधान और शासन ने विशेष सुविधायें अपलब्ध करवाई है। प्रतिनिधि संस्थाओं में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि 95 वें संवैधानिक संशोधन (2010) के आधार पर 25 जनवरी, 2020 तक के लिए बढ़ा दी गई है। सरकारी नौकरियों में इनके लिए विशेष दावों की व्यवस्था को अपनाया गया है, जिसके लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है और संसद तथा विधानमण्डलो में इनके लिए जनसंख्या के अनुपात में स्थान आरक्षित हैं।
3. सामाजिक सुरक्षा - युवक वर्ग व बालको की शोषण से रक्षा करने के लिए अनेक कानून पारित किये गये हैं। कुछ राज्य सरकारों द्वारा वृद्धावस्था पेंशन योजना लागू की गई है। बीमारी तथा दुर्घटना के विरुद्ध सुरक्षा के लिए कुछ सीमा तक मजदूर वर्ग बीमा योजना लागू की गई है तथा बेरोजगारी बीमा योजना को लागू करने और रोजगार की सुविधाएँ बढाने के लिए प्रयास किये जा रहे है। भारत सरकार ने जुलाई 2003 में 'वरिष्ठ पेंशन बीमा योजना' व निर्धनता रेखा से नीचे के परिवारों के लिए सार्वभौमिक स्वास्थ्य बीमा योजना' लागू की गई है। राज्य सामाजिक कल्याण की दिशा में धीमी गति से ही सही, लेकिन आगे बढ़ रहे हैं।
4. सम्पत्ति के अधिकार से सम्बन्धित व्यवस्था में परिवर्तन- सम्पत्ति के मूल अधिकार को आर्थिक-सामाजिक न्याय के मार्ग में बाधक मानते हुए, पहले तो विविध संवैधानिक संशोधन के आधार पर इसे सीमित किया गया और बाद में 44 वे संवैधानिक संशोधन (1979) के आधार पर उसे मूल अधिकारों की सूची से निकाल दिया गया अब सम्पत्ति का अधिकार केवल एक कानूनी अधिकार है, मूल अधिकार नहीं।
5. अनिवार्य तथा निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा का अधिकार - निदेशक तत्वों के अन्तर्गत अनुच्छेद 45 में राज्य को निःशुल्क तथा अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था करने का निर्देश दिया गया है। इस निर्देश के अनुरूप 2002 ई. में 86 वे संवैधानिक संशोधन के आधार पर प्राथमिक शिक्षा के मूल अधिकार की व्यवस्था करते हुए कहा गया है कि राज्य 6 से लेकर 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा देने को बाध्य होगा। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु 'सर्व शिक्षा अभियान चलाया गया है और विद्यालयों में मध्यावकाश भोजन (मिड-डे-मील) की व्यवस्था की गई है।
6. न्यायिक व्यवस्था में सुधार - न्यायपालिका का कार्यपालिका से पृथक्करण किया गया, जनता को निष्पक्ष न्याय मिल सके। इसी प्रकार शीघ्र न्याय की प्राप्ति के लिए 'लोक अदालतों की जिससे व्यवस्था को अपनाया गया तथा नि शुल्क कानूनी सहायता के लिए भी कुछ व्यवस्थायें की गई हैं। 2001- 02 में शीघ्र न्याय के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए त्वरित न्यायालयों की व्यवस्था को अपनाया गया है।
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- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रवाद के उद्भव और विकास के कारणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय आन्दोलन में कांग्रेस के उदारवादी चरण की विचारधारा, कार्यपद्धति, माँगें, सीमाओं के आलोक में मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के जन्म के संदर्भ पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काँग्रेस में उग्रवादी विचारधारा के उद्भव के क्या कारण थे?
- प्रश्न- भारत में राष्ट्रवाद के उदय के तात्कालिक कारण क्या थे?
- प्रश्न- बंगाल विभाजन के निहितार्थ स्पष्ट करते हुए स्वदेशी आन्दोलन का वर्णन कीजिए
- प्रश्न- कांग्रेस के पूर्ववर्ती संगठनों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- उदार राष्ट्रवादियों की विचारधारा एवं कार्यपद्धति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय उदारवादियों के योगदान पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- उग्रवादी राष्ट्रीय आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? इसके विकास के समय की राजनीतिक परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सन् 1909 ई. अधिनियम पारित होने के कारण बताइये।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, (1909 ई.) के प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- जलियाँवाला हत्याकांड की घटना तथा उसके प्रभाव की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- खिलाफत आन्दोलन से क्या अभिप्राय है? खिलाफत आन्दोलन के उदय एवं विकास की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- असहयोग आन्दोलन के प्रारम्भ होने प्रमुख कारणों की सविस्तार विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- असहयोग आन्दोलन की असफलता के कारणों पर प्रकाश डालते हुए इसके महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- असहयोग आंदोलन के सिद्धांतों एवं कार्यक्रमों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वैध शासन प्रणाली से आप क्या समझते हैं? इसकी असफलता के क्या कारण थे?
- प्रश्न- 'सविनय अवज्ञा' का अभिप्राय स्पष्ट करते हुए सविनय अवज्ञा आन्दोलन के प्रमुख कारणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रारम्भ कब और किस प्रकार हुआ सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कार्यक्रम पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड' पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रौलेक्ट एक्ट क्या था?
- प्रश्न- महात्मा गाँधी द्वारा 'खिलाफत' जैसे धार्मिक आन्दोलन का समर्थन किन आधारों पर किया गया था?
- प्रश्न- असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रमों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- असहयोग आन्दोलन के सिद्धान्त, कार्यक्रमों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- माण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (1919 ई.) के प्रमुख गुणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' के विषय में आप क्या जानते हैं? इसे आरम्भ करने के क्या कारण थे?
- प्रश्न- गाँधी-इरविन समझौता क्या था?
- प्रश्न- संविधान सभा का निर्माण किस प्रकार किया गया स्पष्ट कीजिए तथा अपने कार्य निष्पादन में इसे किन बाधाओं का सामना करना पड़ा?
- प्रश्न- भारतीय संविधान सभा की अवधारणा का विकास किस प्रकार हुआ, वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान से आप क्या समझते हैं? भारतीय संविधान के विभिन्न स्रोतों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के निर्माण की अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान सभा के प्रकृति स्वरूप की चर्चा करते हुए यह भी स्पष्ट कीजिए कि क्या इसे 'वकीलों का स्वर्ग' कहा जा सकता है?
- प्रश्न- क्या आप इस विचार से सहमत हैं कि भारतीय संविधान 1935 के भारत शासन अधिनियम का वृहत् संस्करण है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संविधान की परिभाषा दीजिए। संविधान के मुख्य प्रकारों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान सभा के प्रमुख सदस्यों की कार्यप्रणाली के विषय में बताइए तथा संविधान निर्माण की विभिन्न समितियाँ कौन-सी थी?
- प्रश्न- संविधान सभा द्वारा संविधान के लिए उद्देश्य प्रस्ताव क्या था? संविधान निर्माताओं के सामने संविधान निर्माण में क्या-क्या समस्याएँ थीं?
- प्रश्न- लिखित व निर्मित संविधान से अभिप्राय बताइए।
- प्रश्न- संविधान सभा को कार्य निष्पादन में किन बाधाओं का सामना करना पड़ा?
- प्रश्न- संविधान सभा के कार्यकरण की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- नेहरू रिपोर्ट (1928) की प्रमुख सिफारिशें क्या थीं?
- प्रश्न- पं. नेहरू द्वारा प्रस्तुत उद्देश्य प्रस्ताव (1946) के महत्वपूर्ण प्रस्ताव क्या थे?
- प्रश्न- भारतीय संविधान की मौलिकता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम 1935 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'प्रारूप समिति' पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- नेहरू रिपोर्ट- 1928 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की प्रस्तावना की भूमिका से क्या आशय है? भारतीय संविधान की प्रस्तावना उद्देश्य तथा महत्व बताइये।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की प्रस्तावना के स्वरूप की विश्लेषणात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए
- प्रश्न- 73 वें संविधान संशोधन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- संविधान की प्रकृति से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- भारतीय संविधान की विशालता के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- भारतीय संविधान में केन्द्र को शक्तिशाली क्यों बनाया गया?
- प्रश्न- भारतीय संविधान में संशोधन प्रक्रिया का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान की प्रस्तावना का क्या महत्व है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की मूल प्रस्तावना को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संवैधानिक उपचारों का अधिकार पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- बयालिसवें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान की मूल प्रस्तावना में किये गये सुधारों को बताइये।
- प्रश्न- एकल नागरिकता क्या है?
- प्रश्न- 'लोक कल्याणकारी राज्य' पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के नागरिकता सम्बन्धी प्रावधानों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत में किसी भी व्यक्ति की नागरिकता किन आधारों पर समाप्त हो सकती है?
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों का महत्व तथा अर्थ बताइये। मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के अधिकार पत्र की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मानव अधिकारों की रक्षा के लिए किये गये विशेष प्रयत्न इस दिशा में कितने कारगर हैं? विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक कर्तव्य कौन-कौन से हैं? इनके महत्व पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्तव्यों की प्रकृति तथा उनके महत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं नीति-निदेशक तत्वों में अन्तर बतलाइये।
- प्रश्न- विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सम्पत्ति के अधिकार पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- निवारक निरोध' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- क्या मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है?
- प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं मानव अधिकारों में अन्तर लिखिए।
- प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्यों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- नीति निर्देशक तत्वों से आप क्या समझते हैं? संविधान में इनके उद्देश्य एवं महत्व का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान में वर्णित नीति निर्देशक सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों तथा नीति निर्देशक सिद्धान्तों में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीति निर्देशक तत्वों के क्रियान्वयन की आलोचनात्मक व्याख्या अपने शब्दों में कीजिए।
- प्रश्न- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्त के स्वरूप और क्षेत्र का वर्णन कीजिये। भारतीयराजनीतिक व्यवस्था में सुधार के लिए यह किस प्रकार उपयोगी है?
- प्रश्न- नीति-निदेशक तत्वों का अर्थ बताइए।
- प्रश्न- हमारे देश में नीति निर्देशक तत्वों का कार्यान्वयन कहाँ तक हुआ है, स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राज्य के उन नीति निर्देशक तत्वों का उल्लेख कीजिये जिन्हें गांधीवाद कहा जाता है।
- प्रश्न- नीति निर्देशक तत्वों की प्रकृति अथवा स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीति निर्देशक सिद्धान्तों का महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में संविधान संशोधन (Constitutional Amendment) की क्या प्रक्रिया अपनाई गई है? विस्तारपूर्वक समझाइए।
- प्रश्न- भारतीय संसद की संविधान संशोधन की शक्ति के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- अनुच्छेद 356 चौवालीसवें संविधान संशोधन विधेयक पर संक्षिप्त टिप्पणी करें।
- प्रश्न- राष्ट्रपति पद की योग्यतायें एवं कार्यकाल बताते हुए इस पद की संवैधानिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रपति की चुनाव प्रक्रिया को समझाइये, उसे अपने पद से कैसे हटाया जा सकता है तथा राष्ट्रपति के पद रिक्तता की स्थिति में उसके कार्यों को कैसे सम्पादित किया जाता है?
- प्रश्न- भारत के राष्ट्रपति की स्थिति के सम्बन्ध में संवैधानिक प्रधान की धारणा का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- प्रधानमन्त्री की स्थिति उसका महत्व तथा उसकी भूमिका की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संघ में प्रधानमन्त्री की नियुक्ति किस प्रकार होती है? शासन में उसका क्या महत्व है?
- प्रश्न- भारत में मंत्रिपरिषद के गठन, कार्य व शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में मंत्रिमंडलीय प्रणाली की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- उपराष्ट्रपति पद की योग्यतायें, कार्यकाल तथा निर्वाचन पद्धति बताइये।
- प्रश्न- उपराष्ट्रपति के कार्य एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाने की प्रक्रिया का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत के राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्या भारतीय राष्ट्रपति 'रबर स्टैम्प' है? पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्ति (Veto Power) का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अनुच्छेद 352 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अनुच्छेद 356 पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री की विशिष्ट स्थिति पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के सम्बन्धों पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- भारत में प्रधानमन्त्री के प्रभुत्व से वृद्धि के कारणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- प्रधानमंत्री वास्तविक कार्यपालक के रूप में टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रधानमन्त्री और संसद पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मंत्रिपरिषद में प्रधानमन्त्री की स्थिति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मंत्रिपरिषद के सामूहिक उत्तरदायित्व पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय संसद की संरचना का संक्षेप में वर्णन कीजिए। संसद के कार्य एवं शक्तियाँ बताइये।
- प्रश्न- राज्य सभा की संरचना, कार्य एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लोकसभा की संरचना एवं लोकसभा का कार्यकाल बताते हुए इसके कार्य एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लोकसभा की शक्तियों एवं स्थिति का विश्लेषण कीजिए
- प्रश्न- भारतीय लोकसभा अध्यक्ष की स्थिति, शक्तियों तथा कार्यों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- संसद में कानून निर्माण प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संसद सदस्यों के विशेषाधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- लोकसभा अध्यक्ष के कार्य एवं अधिकार संक्षेप में बतायें।
- प्रश्न- राज्य सभा के पदाधिकारियों के विषय में बताइए।
- प्रश्न- वित्त विधेयक के सम्बन्ध में लोकसभा के क्या विशेषाधिकार हैं?
- प्रश्न- धन विधेयक एवं वित्त विधेयक के मध्य भेद स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संसदीय व्यवस्था की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतीय संसद में विपक्ष की भूमिका टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल की नियुक्ति एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल की स्वविवेकीय कार्यों एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्रीय सरकार के प्रतिनिधि के रूप में राज्यपाल की भूमिका अथवा स्थिति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मुख्यमन्त्री की नियुक्ति किस प्रकार होती है? उसकी राज्य के शासन में क्या भूमिका और स्थिति है?
- प्रश्न- मुख्यमन्त्री की नियुक्ति, उसके अधिकार एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए एवं मन्त्रिपरिषद एवं विधानसभा के सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल, मंत्रिपरिषद तथा मुख्यमंत्री के आपसी सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल की स्वविवेकी शक्तियों पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'केन्द्रीय अभिकर्ता' के रूप में राज्यपाल की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- राज्यपाल का निर्वाचन क्यों नहीं होता? संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- संविधान के अनुच्छेद 356 के संदर्भ में राज्य के राज्यपाल की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- मुख्यमन्त्री / मन्त्री पद की पात्रता सम्बन्धी सर्वोच्च न्यायालय के 10 सितम्बर, 2000 के निर्णय की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'मुख्यमंत्री चयन की राजनीति टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- विधानसभा की रचना तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- विधान परिषद की रचना किस प्रकार होती है? उसके कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना और गठन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक समीक्षा के अधिकार का वर्णन कीजिए तथा इसका महत्व समझाइये।
- प्रश्न- सर्वोच्च न्यायालय की आवश्यकता एवं महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सर्वोच्च न्यायालय के संगठन, शक्तियों और कार्यों की विवेचना कीजिए। इसे भारतीय संविधान का संरक्षक क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- उच्च न्यायालय के गठन एवं न्यायाधीशों की नियुक्ति, कार्यकाल,शपथ एवं स्थानान्तरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार या शक्तियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों के रक्षक के रूप में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- 'सामाजिक न्याय' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- न्याय पुनः निरीक्षण की शक्ति तथा उच्च न्यायालयों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में केन्द्र राज्य सम्बन्धों की स्पष्ट व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में केन्द्र राज्य सम्बन्धों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्र तथा राज्यों के बीच सम्बन्धों के सुधार के लिए आप किन उपायों को आवश्यक समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राज्य स्वायत्तता (Autonomy) से आप क्या समझते हैं? संक्षेप में टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- 'सहकारी संघवाद' (Co-operative Federalism) पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय परिषदों की स्थापना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वित्त आयोग के गठन पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय विकास परिषद के गठन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- संविधान की 5वीं एवं 6ठी अनुसूची किन क्षेत्रों को विशेष दर्जा प्रदान करती है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संविधान की छठी अनुसूची किन क्षेत्रों से सम्बन्धित विशेष प्रावधान करती है?
- प्रश्न- संविधान में आदिवासी क्षेत्रों के लिये विशेष प्रावधान क्यों रखे गये? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत और उत्तर-पूर्व के राज्यों को लागू इनर-लाइन परमिट क्या है?
- प्रश्न- भारत में निर्वाचन आयोग के संगठन एवं कार्यों अथवा शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को दूर करने के सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- क्या निर्वाचन आयोग एक निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र संस्था है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मतदान व्यवहार क्या है? मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्वों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- निर्वाचन विषयक आधारभूत सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मुख्य निर्वाचन आयुक्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
- प्रश्न- चुनाव सुधारों में बाधाओं पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्व बताइये।
- प्रश्न- चुनाव सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।